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श्रीमद्भागवत महापुराण

" श्री मद्भागवतं पुराण तिलकं यद् वैष्णवानां धनम् । "
श्री मद्भागवत महापुराण को भगवान श्री कृष्ण का वाङ्गमय विग्रह माना जाता है. यह वैष्णवों का परम धन है , श्रीमद्भागवत महापुराण में १८ हजार श्लोक, ३३५ अध्याय तथा १२ स्कन्ध हैं।श्रीमद् भागवत की कथा श्रवण करने से मनुष्य का आध्यात्मिक विकास होता है और जीव की श्री ठाकुर जी के प्रति भक्ति प्रगाढ़ होती है. श्रीमद् भागवत कथा हमारे पूर्वजों का उद्धार कर हमारी स्वयं की आध्यात्मिक ऊर्जा को जाग्रत करती है और हमें जीवन के परम लक्ष्य को प्रदान करती है ।

श्रीराम कथा

"रामायण सुरतरु की छाया , दुःख भये दूर निकट जो आया ।" "रचि महेश निज मानस रखा,पाइ सुसमय शिवा सन भाषा ।' रामकथा की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी श्री शंकर जी ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा रामायण के नाम से विख्यात है।रामकथा में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के पावन चरित्रों का वर्णन है जिसे श्रवण करके मनुष्य धर्म पूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त करता है जिससे मानव मात्र का समस्त कल्याण हो जाता है ।

श्री शिव पुराण

"ॐ नमः शिवाय।"
" स्वविकार निरासश्च सज्जनैः क्रियते कथम् |"
भारतीय जीवन में पुराणों का विशेष महत्व है। इनमें से एक महत्वपूर्ण पुराण है ‘शिव पुराण’। शिव पुराण की विशेषता यह है कि इसमें भगवान शिव की विविध लीलाओं एवं महिमा का गुणगान और उनके भक्तों के चरित्रों का वर्णन किया गया है। इस पुराण की कथा श्रवण करने से जीवमात्र की शिव चरणों में भक्ति प्रगाढ़ होती है जो हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्धि प्रदान कर हमारे समस्त कष्टों का हरण करती है ,शिवपुराण में २४००० श्लोक हैं, जिसमें सात संहिताए हैं। शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान गति प्रदान करने वाला है मनुष्य को पूर्णभक्ति एवं श्रद्धापूर्वक इसे श्रवण करना चाहिए ।

श्री मद्देवी भागवत कथा

"तथा न गंगा न गया न काशी न नैमिषं न मथुरा न पुष्करम्। पुनाति सद्य: बदरीवनं नो यथा हि देवीमख एष विप्रा:।" अर्थात - गंगा, गया, काशी, नैमिषारण्य, मथुरा, पुष्कर और बदरीवन आदि तीर्थों की यात्रा से भी वह फल प्राप्त नहीं होता, जो नवाह्र पारायण रूप देवी भागवत श्रवण यज्ञ से प्राप्त होता है। श्रीमद् देवीभागवत पुराण में १२ स्कंध, १८०००श्लोक एवं ३१८ अध्याय हैं। देवीभागवत पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर आदिशक्ति जगज्जननी भगवती की सम्पूर्ण महिमा का वर्णन किया गया है। देवी भागवत पुराण के अध्ययन और उसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य की सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं तथा जीव समस्त पाप समूल नष्ट हो जाते हैं।

यज्ञ

"यज्ञों वै विष्णु:"
संस्कृत के यज् धातु से यज्ञ शब्द बना है। जिस स्थल पर देवताओं का आवाहन पूजन द्वारा यजन कर उनको अग्निमुख से हवनीय पदार्थ प्रदान किये जाते हैं, उसे यज्ञ कहते हैं। यज्ञ के लिए सर्वप्रथम भूमि पूजन करके मंडप का निर्माण किया जाता है। फिर सभी दिशाओं में निर्धारित देवताओं का आवाहन पूजन किया जाता है। फिर अग्निदेव की स्थापना करके वस्तु प्रदान की जाती है उसे हवन कहते हैं। हवन के माध्यम से ही मानव देवताओं को प्रसन्न करते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।

कर्मकाण्ड

कर्मकांडीय दृष्टि से पूजन की विभिन्न व विशेष परंपराएँ रही हैं, जिनमें पंचोपचार तथा षोडशोपचार पूजन,राजोपचार सर्वाधिक प्रमुख हैं ,पूजन विधि के लिए कोई एकरूप प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जा सकती, क्योंकि अवसर व देव के अनुसार प्रक्रिया परिवर्तित हो सकती है, इसमे वेद के प्रमाण तथा विद्वानों का मतैक्य भी लेना चाहिए महाराज श्री के आचार्यत्व में काशी के विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक विधा से सम्पूर्ण कर्मकांड ,अनुष्ठान , यज्ञादि सम्पादित किये जाते हैे।

ज्योतिष

ज्योतिश्चक्रे तु लोकस्य सर्वस्योक्तं शुभाशुभम् ।
ज्योतिर्ज्ञानं तु यो वेद स याति परमां गतिम् ।।
ज्योतिश्चक्रमें संसारके सभी जनोंका शुभाशुभ विद्यमान रहता है . जो ज्योतिषशास्त्रको जानता है , वह परमगति ( ब्रह्मसायुज्य ) – को प्राप्त होता है ,ज्योतिष शास्त्र के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने भविष्य के बारे में जान सकता है. साथ ही ज्योतिष विद्या में कुंडली में चल रहे कई तरह के दोषों के उपायों के बारे में भी बताया जाता है, जिससे कि व्यक्ति बेहतर जीवन जी सके।

काल सर्प योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब व्यक्ति के जन्मांग चक्र में राहु और केतु की स्थिति आमने सामने की होती है। दोनों १८० डिग्री पर रहते हैं। यदि बाकी सात ग्रह राहु केतु के एक तरफ हो जाएं और दूसरी ओर कोई ग्रह न रहे, तो ऐसी स्थिति में कालसर्प योग बनता है। इसे ही कालसर्प दोष कहा जाता है। हालांकि कालसर्प योग का निर्धारण करते समय अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए कालसर्प योग के निम्न लक्षण दिखाई देते है।

  • १-जातक को प्राय: स्वप्न में सर्प का दिखाई देना।
  • २- अत्यधिक परिश्रम के बाद भी कार्यों में सफलता न पाना या कार्य मे बाधा होना
  • ३-मानसिक तनाव से ग्रस्त रहना।
  • ४-सही निर्णय न ले पाना।
  • ५-कलहपूर्ण पारिवारिक जीवन।
  • ६-गुप्त शत्रुओं का होना ।