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२३ वर्षों का
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पं.महेन्द्र शास्त्री (आदर्श जी) - चित्रकूट धाम

भगवान श्री राम की तपस्थली श्री चित्रकूट धाम की पावन माटी में सद्गृहस्थ कथा व्यास पं. महेन्द्र शास्त्री (आदर्श जी) का जन्म ३१ मार्च १९८० को चित्रकूट धाम के प्रसिद्ध कर्मकांडी पाण्डेय परिवार में हुआ , आपके पिता जी का नाम श्री रमाकान्त पाण्डेय एवं माता जी का नाम श्रीमति आशा पाण्डेय है ,आप अपने माता पिता के एकमात्र पुत्र हैं अपने पूर्वजों की परिपाटी का अनुकरण करते हुए आप अपने कुल की ५ वीं पीढ़ी हैं ,अपने घर के भक्तिमय वातावरण में बचपन से ही आपमे भक्ति का अंकुरण हो गया बहुत कम उम्र में श्री हनुमान जी मे आपकी प्रगाढ़ भक्ति हो गयी थी ।

आप अपने दादा जी स्व.पं.श्री गोविन्द प्रसाद पाण्डेय जी से रामायण और कृष्ण चरित्र की कथाओं का श्रवण करते और उन्ही से धीरे-धीरे कर्मकांड की शिक्षा भी प्राप्त करते थे,अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही आपने स्व.पं.श्री रामसखा जी महाराज के द्वारा पंचांग एवं ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की तथा अपनी तरुण अवस्था मे अपने बड़े दादा स्व. पं. चन्द्रशेखर दत्त पाण्डेय जी जो कि संस्कृत व्याकरण के प्रकाण्ड विद्वान तथा श्री मद्भागवत के विख्यात प्रवक्ता थे उन्ही की कृपा छाया में पारंपरिक विधा से श्री मद्भवतगीता, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद्भागवत और अन्य पवित्र शास्त्रों का ज्ञान भी प्राप्त किया ।

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आपके लिए हमारी विशेष सेवाएं

श्रीमद्भागवत महापुराण

" श्री मद्भागवतं पुराण तिलकं यद् वैष्णवानां धनम् । " श्री मद्भागवत महापुराण को भगवान श्री कृष्ण का वाङ्गमय विग्रह माना जाता है. यह वैष्णवों का परम धन है , श्रीमद्भागवत महापुराण में १८ हजार श्लोक, ३३५ अध्याय तथा १२ स्कन्ध हैं।
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श्रीराम कथा

"रामायण सुरतरु की छाया , दुःख भये दूर निकट जो आया ।" "रचि महेश निज मानस रखा,पाइ सुसमय शिवा सन भाषा ।' रामकथा की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी श्री शंकर जी ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया।
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श्री शिव पुराण कथा

"ॐ नमः शिवाय।" " स्वविकार निरासश्च सज्जनैः क्रियते कथम् |" भारतीय जीवन में पुराणों का विशेष महत्व है। इनमें से एक महत्वपूर्ण पुराण है ‘शिव पुराण’। शिव पुराण की विशेषता यह है कि इसमें भगवान शिव की विविध लीलाओं एवं महिमा का गुणगान ।
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श्री मद्देवी भागवत पुराण

"तथा न गंगा न गया न काशी न नैमिषं न मथुरा न पुष्करम्। पुनाति सद्य: बदरीवनं नो यथा हि देवीमख एष विप्रा:।" अर्थात - गंगा, गया, काशी, नैमिषारण्य, मथुरा, पुष्कर और बदरीवन आदि तीर्थों की यात्रा से भी वह फल प्राप्त नहीं होता ।
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यज्ञ

"यज्ञों वै विष्णु:"
संस्कृत के यज् धातु से यज्ञ शब्द बना है। जिस स्थल पर देवताओं का आवाहन पूजन द्वारा यजन कर उनको अग्निमुख से हवनीय पदार्थ प्रदान किये जाते हैं, उसे यज्ञ कहते हैं यज्ञ के लिए सर्वप्रथम भूमि पूजन करके मंडप का निर्माण किया जाता है।
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कर्मकांड

कर्मकांडीय दृष्टि से पूजन की विभिन्न व विशेष परंपराएँ रही हैं, जिनमें पंचोपचार तथा षोडशोपचार पूजन,राजोपचार सर्वाधिक प्रमुख हैं ,पूजन विधि के लिए कोई एकरूप प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जा सकती क्योंकि अवसर व देव के अनुसार प्रक्रिया परिवर्तित हो सकती है।
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हमारे २३ साल कार्य अनुभव।

भक्ति के साथ भागवत सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान से त्याग और त्याग की भावना आने से व्यक्ति की सांसारिक मनोकामनाएं पूरी और वासनाएं दूर होती हैं। भागवत कथा परमात्मा से मिलने का माध्यम है, यह साध्य है और साधन भी। भागवत सभी कामनाओं की पूर्ति करती है।
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